तो दोस्तों क्या हाल-चाल है दोस्तों आज हमारी साइट पर आपका बहुत-बहुत स्वागत अभिनंदन और वंदन है हम आपके लिए चुनिंदा शायरों द्वारा लिखे गए कुछ चुनिंदा गजल लेकर आए हैं
दोस्तों! सुख और दुख हंसी और खुशी इन सब का एक के बाद आना जाना लगा रहता है कभी गम के बाद खुशी आता है तो कभी खुशी के बाद गम यही दुनिया की रीत है, यही दुनिया का सिस्टम है लेकिन दोस्तों हमारे आसपास कभी-कभी कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो हमारे दिल में एक खास जगह बना लेते हैं और अंदर ही अंदर वह हमें पसंद भी आने लगते हैं लेकिन फिर वक्त, हालात और नियत कुछ इस तरह से बदलती है की हमारा दिल टूट सा जाता है और हमें लगता है कि हम अकेले से हो गए हैं, कभी-कभी यह हमारी गलतफहमीयों की वजह से होता है तो कभी-कभी यह हमारी कमियों की वजह से होता है ऐसे में हमें लगने लगता है कि जिसे हमने चाहा था या जिसे हमने अपने दिल में जगह दिया था उसने हमारे दिल हमारी चाहत की कदर नहीं की, तो ऐसे टूटे दिल वाले दोस्त लोगों के लिए हम पेश हैं दुख भरे गजल लेकर, उम्मीद करते हैं यह पोस्ट आपको पसंद आएगा। हम इस पोस्ट पर नए नए और पुराने बेस्ट ग़ज़ल अपडेट करते रहेंगे।
कोई ये कैसे बताए कि तन्हा क्यों है दर्द शायरी
कोई ये कैसे बताए कि वो तन्हा क्यूँ है
वो जो अपना था वही और किसी का क्यूँ है
यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यूँ है
यही होता है तो आख़िर यही होता क्यूँ है
इक ज़रा हाथ बढ़ा दें तो पकड़ लें दामन
उन के सीने में समा जाए हमारी धड़कन
इतनी क़ुर्बत है तो फिर फ़ासला इतना क्यूँ है
दिल-ए-बर्बाद से निकला नहीं अब तक कोई
इस लुटे घर पे दिया करता है दस्तक कोई
आस जो टूट गई फिर से बंधाता क्यूँ है
तुम मसर्रत का कहो या इसे ग़म का रिश्ता
कहते हैं प्यार का रिश्ता है जनम का रिश्ता
है जनम का जो ये रिश्ता तो बदलता क्यूँ है
कैफ़ी आज़मी
अये मोहब्बत तेरे अंजाम पे अधूरी मोहब्बत शायरी
ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तेरे नाम पे रोना आया
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
कभी तक़दीर का मातम कभी दुनिया का गिला
मंज़िल-ए-इश्क़ में हर गाम पे रोना आया
मुझ पे ही ख़त्म हुआ सिलसिला-ए-नौहागरी
इस क़दर गर्दिश-ए-अय्याम पे रोना आया
जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'
मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया
शकील बदायुनी
इस से पहले की बेवफा हो जाएं बेवफाई शायरी
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ
तू कि यकता था बे-शुमार हुआ
हम भी टूटें तो जा-ब-जा हो जाएँ
हम भी मजबूरियों का उज़्र करें
फिर कहीं और मुब्तला हो जाएँ
हम अगर मंज़िलें न बन पाए
मंज़िलों तक का रास्ता हो जाएँ
देर से सोच में हैं परवाने
राख हो जाएँ या हवा हो जाएँ
इश्क़ भी खेल है नसीबों का
ख़ाक हो जाएँ कीमिया हो जाएँ
अब के गर तू मिले तो हम तुझ से
ऐसे लिपटें तिरी क़बा हो जाएँ
बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़'
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ
अहमद फराज
तुम्हारी तरह मुझ कौन चाहेगा? शायरी
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लाएगा
न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आएगा
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आएगा
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बा'द ये मौसम बहुत सताएगा
बशीर बद्र
अपना बना ले मुझको शायरी
अपने हाथों की लकीरों में सजा ले मुझ को
मैं हूँ तेरा तू नसीब अपना बना ले मुझ को
मैं जो काँटा हूँ तो चल मुझ से बचा कर दामन
मैं हूँ गर फूल तो जूड़े में सजा ले मुझ को
तर्क-ए-उल्फ़त की क़सम भी कोई होती है क़सम
तू कभी याद तो कर भूलने वाले मुझ को
मुझ से तू पूछने आया है वफ़ा के मा'नी
ये तिरी सादा-दिली मार न डाले मुझ को
मैं समुंदर भी हूँ मोती भी हूँ ग़ोता-ज़न भी
कोई भी नाम मिरा ले के बुला ले मुझ को
तू ने देखा नहीं आईने से आगे कुछ भी
ख़ुद-परस्ती में कहीं तू न गँवा ले मुझ को
बाँध कर संग-ए-वफ़ा कर दिया तू ने ग़र्क़ाब
कौन ऐसा है जो अब ढूँढ निकाले मुझ को
ख़ुद को मैं बाँट न डालूँ कहीं दामन दामन
कर दिया तू ने अगर मेरे हवाले मुझ को
मैं खुले दर के किसी घर का हूँ सामाँ प्यारे
तू दबे-पाँव कभी आ के चुरा ले मुझ को
कल की बात और है मैं अब सा रहूँ या न रहूँ
जितना जी चाहे तिरा आज सता ले मुझ को
बादा फिर बादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ 'क़तील'
शर्त ये है कोई बाँहों में सँभाले मुझ को
क़तील शिफ़ाई
अपना लिया हर रंग ज़माने वाला शायरी
अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला
हम ने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला
एक बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा
जिस तरफ़ देखिए आने को है आने वाला
उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मा'लूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
दूर के चाँद को ढूँडो न किसी आँचल में
ये उजाला नहीं आँगन में समाने वाला
इक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सब की दुनिया
कोई जल्दी में कोई देर से जाने वाला
निदा फ़ाज़ली
तुम्हे भूलने में शायद ज़माना लगे
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे
तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ मुझे
तुम्हें भुलाने में शायद मुझे ज़माना लगे
जो डूबना है तो इतने सुकून से डूबो
कि आस-पास की लहरों को भी पता न लगे
वो फूल जो मिरे दामन से हो गए मंसूब
ख़ुदा करे उन्हें बाज़ार की हवा न लगे
न जाने क्या है किसी की उदास आँखों में
वो मुँह छुपा के भी जाए तो बेवफ़ा न लगे
तू इस तरह से मिरे साथ बेवफ़ाई कर
कि तेरे बा'द मुझे कोई बेवफ़ा न लगे
तुम आँख मूँद के पी जाओ ज़िंदगी 'क़ैसर'
कि एक घूँट में मुमकिन है बद-मज़ा न लगे
कैसर उल जाफरी
तू मेरी पहली मोहब्बत थी शायरी
तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त
तू मिरी पहली मोहब्बत थी मिरी आख़िरी दोस्त
लोग हर बात का अफ़्साना बना देते हैं
ये तो दुनिया है मिरी जाँ कई दुश्मन कई दोस्त
तेरे क़ामत से भी लिपटी है अमर-बेल कोई
मेरी चाहत को भी दुनिया की नज़र खा गई दोस्त
याद आई है तो फिर टूट के याद आई है
कोई गुज़री हुई मंज़िल कोई भूली हुई दोस्त
अब भी आए हो तो एहसान तुम्हारा लेकिन
वो क़यामत जो गुज़रनी थी गुज़र भी गई दोस्त
तेरे लहजे की थकन में तिरा दिल शामिल है
ऐसा लगता है जुदाई की घड़ी आ गई दोस्त
बारिश-ए-संग का मौसम है मिरे शहर में तो
तू ये शीशे सा बदन ले के कहाँ आ गई दोस्त
मैं उसे अहद-शिकन कैसे समझ लूँ जिस ने
आख़िरी ख़त में ये लिक्खा था फ़क़त आप की दोस्त
अहमद फराज
सदियों से अधूरा अकेलापन शायरी
अपने एहसास से छू कर मुझे संदल कर दो
मैं कि सदियों से अधूरा हूँ मुकम्मल कर दो
न तुम्हें होश रहे और न मुझे होश रहे
इस क़दर टूट के चाहो मुझे पागल कर दो
तुम हथेली को मिरे प्यार की मेहंदी से रंगो
अपनी आँखों में मिरे नाम का काजल कर दो
इस के साए में मिरे ख़्वाब दहक उट्ठेंगे
मेरे चेहरे पे चमकता हुआ आँचल कर दो
धूप ही धूप हूँ मैं टूट के बरसो मुझ पर
इस क़दर बरसो मिरी रूह में जल-थल कर दो
जैसे सहराओं में हर शाम हवा चलती है
इस तरह मुझ में चलो और मुझे जल-थल कर दो
तुम छुपा लो मिरा दिल ओट में अपने दिल की
और मुझे मेरी निगाहों से भी ओझल कर दो
मसअला हूँ तो निगाहें न चुराओ मुझ से
अपनी चाहत से तवज्जोह से मुझे हल कर दो
अपने ग़म से कहो हर वक़्त मिरे साथ रहे
एक एहसान करो इस को मुसलसल कर दो
मुझ पे छा जाओ किसी आग की सूरत जानाँ
और मिरी ज़ात को सूखा हुआ जंगल कर दो
वसी शाह
कोई नहीं है बेवफ़ा अफ़्सोस मत करो शायरी
वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो
इतना ही उस का साथ था अफ़्सोस मत करो
इंसान अपने आप में मजबूर है बहुत
कोई नहीं है बेवफ़ा अफ़्सोस मत करो
इस बार तुम को आने में कुछ देर हो गई
थक-हार के वो सो गया अफ़्सोस मत करो
दुनिया में और चाहने वाले भी हैं बहुत
जो होना था वो हो गया अफ़्सोस मत करो
इस ज़िंदगी के मुझ पे कई क़र्ज़ हैं मगर
मैं जल्द लौट आऊँगा अफ़्सोस मत करो
ये देखो फिर से आ गईं फूलों पे तितलियाँ
इक रोज़ वो भी आएगा अफ़्सोस मत करो
वो तुम से आज दूर है कल पास आएगा
फिर से ख़ुदा मिलाएगा अफ़्सोस मत करो
बे-कार जी पे बोझ लिए फिर रहे हो तुम
दिल है तुम्हारा फूल सा अफ़्सोस मत करो
बशीर बद्र
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जाएगा शायरी
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा
दीवारों से सर टकराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा
हर बात गवारा कर लोगे मिन्नत भी उतारा कर लोगे
ता'वीज़ें भी बंधवाअोगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा
तन्हाई के झूले खोलेंगे हर बात पुरानी भूलेंगे
आईने से तुम घबराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा
जब सूरज भी खो जाएगा और चाँद कहीं सो जाएगा
तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा
बेचैनी बढ़ जाएगी और याद किसी की आएगी
तुम मेरी ग़ज़लें गाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा
सईद राही
तू भी हो जाएगा बदनाम मिरे साथ न चल
मुझ पे हैं सैकड़ों इल्ज़ाम मिरे साथ न चल
तू भी हो जाएगा बदनाम मिरे साथ न चल
तू नई सुबह के सूरज की है उजली सी किरन
मैं हूँ इक धूल भरी शाम मिरे साथ न चल
अपनी ख़ुशियाँ मिरे आलाम से मंसूब न कर
मुझ से मत माँग मिरा नाम मिरे साथ न चल
तू भी खो जाएगी टपके हुए आँसू की तरह
देख ऐ गर्दिश-ए-अय्याम मिरे साथ न चल
मेरी दीवार को तू कितना सँभालेगा 'शकील'
टूटता रहता हूँ हर गाम मिरे साथ न चल
सकील आज़मी
पहले माझी का कोई जख्म तो भर जाने दे शायरी
अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दे
तेरा मुजरिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे
ऐ नए दोस्त मैं समझूँगा तुझे भी अपना
पहले माज़ी का कोई ज़ख़्म तो भर जाने दे
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी
कोई आँसू मेरे दामन पर बिखर जाने दे
ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको
सोचता हूँ कि कहूँ तुझसे मगर जाने दे
ज़िंदगी मैं ने इसे कैसे पिरोया था न सोच
हार टूटा है तो मोती भी बिखर जाने दे
इन अँधेरों से ही सूरज कभी निकलेगा 'नज़ीर'
रात के साए ज़रा और निखर जाने दे
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